बलिया में क्रान्ति और दमन (अगस्त 1942 में स्वाधीन बलिया और नौकरशाही )
बलिया पर लिऽा गया हर वाक्य या तो सरकारी नजर वेफ हिसाब से कहा गया या पिफर सीना चौड़ा करते हुए फ्हम हईं बागी बलियाय् का ताल ठोंक कर आगे बढ़ जाता है। इससे न तो बलिया वेफ वाकयों की भीतरी परतें ऽुलती हैं न ही कोई ऐसा विराम मिलता है जो समाज विज्ञान की दुनिया को रोक कर बतिया सवेफ और यह बता सवेफ कि यह क्षेत्रा जब अपने क्रान्तिकारी तेवर में था, उसमें बड़ी भूमिका यहाँ वेफ कृषकों की थी। 1942 का आन्दोलन जब राष्ट्रीय बनने की चाहत को पूरा आकार भी नहीं दे पाया था, उससे पहले ही बलिया में हो रही विद्रोही घटनाओं ने राजनीतिक गरमी पैदा कर दी थी। अहिंसा की गाड़ी बम्बई से चलकर बनारस, लऽनऊ वाया आजमगढ़ और बलिया तक पहुँचते-पहुँचते अपने मूल अर्थ को ही त्याग चुकी थी। इस पुस्तक के माध्यम से फ्बलिया में क्रान्ति और दमनय् का पूरा वृत्तान्त पता चलता है। 1942 वेफ जरिये बलिया में राष्ट्रीय आन्दोलन, गाँधीवादी सि(ान्तों का पफरमान और कृषकों वेफ ठेठ देहाती सत्याग्रह को समझाना इस पुस्तक का प्रमुख उद्देश्य है।